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नीरा आर्या की आत्मकथा की शूरुआत
भारत की इतिहास मे बहुत से सुरमायों ने अपना बलिदान दिया। वह देश के खातिर खुद का बलिदान देने से भी पीछे नही हटे।
आज भी हम उन बहादुर सूरमाओं के बारे मे पढते हैं। उनकी कहानियां सुनते हैं किताबो मे उनके चर्चे हैं।
लेकिन कुछ ऐसे भी देश प्रेमी थे जिन्होने अपने देश को आजाद करने मे अपना योगदान दिया।
लेकिन ना तो सरकार उन्हे सम्मान दे पाई और ना ही हम। ना तो उनका कोई जिक्र करता है और ना ही उनके बलिदान के बारे मे कोई बात करता है।
आज हम ऐसे ही एक देशप्रेमी के बारे मे पढेंगे जिन्होने देश के खातिर अपने पति और खुद का बलिदान दे दिया।
यह कहनी है नीरा आर्या की नीरा का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत के खेकड़ा मे हुआ था। नीरा का जन्म एक व्यापारी के घर मे हुआ था। नीरा के पिता बागपत के सबसे मसहूर और प्रतिष्ठित व्यापारी थे।
नीरा बचपन से ही अपने अंदर पलने वाले देश प्रेम और देश के प्रति जज्बे के कारन उन्होने बचपन मे ही ठान लिया था की वह देश की अजादी के लडाई मे हिस्सा लेगी।
एक समय था जब नीरा के पिता का कारोबार कोलकाता मे फल फूल रहा था।
इसके कारन नीरा आर्य की पढ़ाई लिखाई कोलकाता मे हुई। इस दौरान नीरा ने हिन्दी,अंग्रेजी और बंगाली के साथ साथ और भी भाषायें भी सीखी।
उनके पिता ने नीरा की शादी ब्रिटिश भारत के CID ऑफिसर श्रीकांत जय रंजन दास से कर दी।
जहां एक तरफ नीरा आर्य की रगो मे देश भक्ति थी तो वही दूसरी ओर उनके पति श्री कांत एक british भारत के cid ऑफिसर थे।
देश भक्ति और देश को आजाद कराने के जज्बे के चलते नीरा ने शादी के बाद आजाद हिंद फौज मे झांसी रेगिमेंट में जुड़ गई।
यह वह रेगिमेंट थी जिसपर अंग्रेजी सरकार, अंग्रेजी गुप्तचर होने का इल्जाम लगाया करते थे।
नीरा आर्य ने अपने पति को क्यों और कैसे मारा? | नीरा आर्या की आत्मकथा
उसी समय श्रीकांत जय रंजन दास को आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जासूसी कर, उन्हे मौत के घाट उतारने की jimmedari सौपी गई।
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एक तरफ श्री कांत को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को मारने का order था। वहीं दूसरी ओर नीरा ने सुभास चंद्र बोस को बचाने की कसम खाई थी।
श्रीकांत ने नेता जी को मारने के लिये गोलियां चलाई थी लेकिन वह गोलियाँ नेता जी को नही लगी थी बल्कि वह गोलियाँ उनके ड्राईवर को जा लगी थी।
नीरा आर्य ने नेता जी को बचाने के लिये अपने पति श्री कांत जय रंजन दास के पेट मे सरिया घोप कर उनकी हत्या कर दी।
नीरा पर उनके पति के हत्या के आरोप पर दिल्ली मे उनके खिलाफ मुक़दमा चलाया गया।
जब नीरा पर यह मुक़दमा चलाया गया उस समय कई बंदी सैनिको को रिहा किया गया। लेकिन नीरा को काले पानी की सजा हो गई। जहां नीरा को बहुत यातनायें दी गई।
आजादी के जंग से अपनी भुमिका का जिक्र करते हुए उन्होने अपनी आत्म कथा भी लिखी है।
जिसमे उन्होने उर्दू लेखिका फरहाना ताज को अपने जीवन के कई किस्से सुनाये। यही वजह रही उन्होने ने भी अपने उपन्यास मे कई हृदय द्रायक अंश लिखे।
नीरा आर्य को कैसी कैसी यातनाये झेलनी पड़ी?
जिसका एक अंस है की जब मुझपर मुक़दमा चला और मुझे काले पानी की सजा दी गई। उस दौरान मुझको कोलकाता जेल से अंडमान लाया गया।
जहां रहने के लिये छोटी छोटी कोठरीयां थी।जहां पहले से ही अन्य महिलाए सजा काट रही थी। यह वह महिलाए थी जो राजनैतिक विरोध मे सज़ा काट रही थी।
इस दौरान मन मे बहुत चिंता होती थी की इस गहरे समुंद्र मे अंजान से द्वीप मे आखिर मुझको आजादी मिलेगी कैसे।
यही वजह रही की ओढ़ने और बिछाने का ख्याल दिमाग से निकल चुका था। मै जैसे तैसे जमीन पर लेट गई थी।
लगभग 12 बजे का वक़्त था जब एक पहरेदार दो कम्बल ले कर आया। बिना कुछ बोले ही वह कम्बल फेक कर चला गया। कम्बल उपर आकर गिरा तो नींद खुल गई।
नींद खुलने से बुरा भी लगा लेकिन एक तरफ कम्बल मिलने का संतोष भी था।
लेकिन एक ही समस्या थी की इन हाथो पैरो मे जो बेडियाँ है उनसे आजादी कैसे मिले और रह रह कर भारत माता से जुदा होने का एहसास सता रहा था।
अगली सुबह जब लोहार आया real life inspirational stories of success in hindi उसने हाथ से बेडियाँ काटते समय थोड़ा हाथ का चमडा भी काट दिया। लेकिन जब पैरो की बारी आई तब लोहार ने आडि टेडी बेडियाँ काटना शुरु कर दिया।
जिसके चलते दो तीन बार पैरों पर आ लगी। जिसके चलते मैने दुखी हो कर कहा अरे क्या अन्धा है जो पैरो पर मारता है।
उसने कहा पैरो पर क्या मैं तो दिल पर भी मार दूंगा, तुम क्या कर लोगी।
मुझे मालुम था की मै वहां गुलाम हूं इस लिये मै कर भी क्या सकती थी। मैने अपना गुस्सा दिखाने के चलते उस पर थूक दिया। और कहा औरतो की इज्जत करना सीख।
इस दौरान वहां मौजूद जेलर ने कहा सुनो तुम्हे छोड़ दिया जाएगा अगर तुम यह बता दो की सुभास चंद्र बोस कहां छिपा हुआ है। नीरा ने कहा वो तो हवाई दुर्घटना मे चल बसे यह तो सारी दुनिया को मालूम है।
लेकिन जेलर ने कहा झूठ बोलती हो तुम की वह हवाई दुर्घटना का शिकार हो गये,वह जिन्दा है। उसके बाद मैने कहा हां वह जिन्दा तो है।
उसके बाद जेलर ने कहा कहां है वो? मैने कहा वह मेरे दिलो और दिमाग मे जिन्दा हैं। उसके बाद गुस्से मे जेलर ने कहा अगर वह तुम्हारे दिल मे हैं तो हम नेता जी को तुम्हारे दिल से निकाल लेंगे। और फिर जेलर ने उनका शारिरिक शोषण किया।
ऐसे कई किस्से है जो अभी तक अनकहे है और अन सुने है जो गुलामी मे जकडे होने के बाद भी भारत को आजाद करने मे अपना योगदान दिया है। भारत को स्वतंत्र कराने मे इनकी बहुत ही अहम भुमिका रही।
लेकिन जब भारत आजाद हुआ। उसके बाद ना तो हम इन्हे इज्जत दे सके और ना ही वो सम्मान दे सके जो उन्हे मिलना चाहिये था।
नीरा आर्य ने जीवन के अंतिम दिनो मे फूल बेच कर गुजारा किया। वह अपने बुढापे मे हैदराबाद के एक झोपड़ी मे रही।
उनके आखिरी समय मे सरकार ने उनकी झोपड़ी भी तोड़ दी। क्युंकि यह झोपड़ी सरकारी जमीन पर बनाई गई थी।
बुढापे के अंतिम समय मे जब इन्हे चारमीनार के पास उस्मानी अस्पताल मे ले जाया गया तो 26 जुलाई 1998 को नीरा आर्य ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
लेकिन उसके बाद भी ना तो वो सम्मान उन्हे सरकार दे पाई और समाज।
इसके बारे मे किसी ने बात तक नही की, इसी दौरान एक पत्रकार ने अपने साथियों के साथ मिल कर नीरा आर्य का अंतिम संस्कार किया।
हम आज भी उन हकिकत और उन अन छुए पहलूयों को नही जानते जिन्होने भारत को स्वतंत्र करने मे अपनी भूमिका निभाई।
अगर आप यह पढ़ रहे हैं तो यहां तक आने के लिये धन्यवाद मुझे आशा है की आपको नीरा आर्या की आत्मकथा की हिन्दी कहानी पसंद आई होगी
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